Friday, March 29, 2013

बिक रही आज़ादी है!!!


बिक  रही आज़ादी है, कौड़ियो के दाम पे
कही पार्टीयो के तो कही धर्म के नाम पे।
चोराहो पे बैठ के , नारे ऐसे लगा रहे 
ज़ंजीरो को बांध के, आज़ादी को भगा रहे।
कौन ज़ंजीरो से बांधेगा, उनको चुन के लाते हैं
लगाके ताला किस्मत पे, चाभी उन्हें थमाते हैं।
आज़ादी का मतलब क्या, जब ज़ंजीरो में रहना हैं
खुले समन्दर सोचे क्या ,जब कुंए में ही रहना हैं।

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