Sunday, November 24, 2013

"तन्हाई"

आज फिर मुझे याद आयी, अपने बिछड़े यार कि,
आज फिर मुझे एह्सास हुआ, उससे अपने साथ कि,
एक अर्सा साथ गुजारा था, फिर पास उसे बुलाया हैं 
दोस्तों कि भीड़ में, "तन्हाई" नाम उसने बनाया हैं.


Saturday, November 23, 2013

जिंदगी कि दास्तां

लिखा था किसी ने लहू से, रेत पे जिंदगी कि दास्तां 
भूल गया था वो फितरत, रेत और वक़्त का बदलना
लिखा तो था दर्द दिल का, पर खुशियों  ने जगह लेली
पाये थे  जंहा काँटों के निशा, फूलो को सींचा लहू से था 

Sunday, November 17, 2013

आहिस्ता आहिस्ता। ....

कभी भूली बिसरी यादो में,
कभी बिखरे से जज़बातो में,
कभी आँखों के किसी कोने में,
पर अक्सर लम्हे वो चले आते हैं। 

हम लेटा करते थे ज़मी पे,
तारो को आसमा से लाने को। 
आवारा घूमते बादलो से,
पानी निचोड़ लाने को। 

पल दो पल में पाना चाहा था,
हर ख़ुशी हर अर्मान को। 
ज़िंदगी में रफ़्तार को,
फिर मौत के फर्मान को। 

सोचते थे है सब हममें,
कुछ कर दिखने को। 
डरते नहीं थे आंधियो से,
आसमां को चीर जाने को। 

पर ज़िंदगी को प्यार था शायद,
प्यार था उसे मुझसे बेइंतहा 
मुझमे जो समां गयी चुपके से 
कि अब जी रहा हूँ मै उसको,

आहिस्ता आहिस्ता। ....