Thursday, December 19, 2013

बुलबुले .....!!!!

उगते हैं बुलबुले आज हवाओ में,
खिलते हैं बुलबुले आज घटाओ में,
बनाके आँधी सी ये सूरत, घुल रहे फिजाओ में है।

मन में सबके ये भरे थे, बुलबुले जो खिल रहे,
देख बढ़ता दुसरो को, बुलबुले ये छोड़ते,
बुलबुलो में जो भरा है, वो हवा पुरानी हैं,
मान इनको मोती सा, पास रखना नादानी हैं।

उगते हैं बुलबुले आज हवाओ में,
खिलते हैं बुलबुले आज घटाओ में,
बनाके आँधी सी ये सूरत, घुल रहे फिजाओ में है।

नाम और बदनाम के, सुबह और शाम के
इस वतन के वास्ते, उस वतन के बुलबुले
बात और विचार के, अपने शिष्टाचार के,
गोलियों और तोप से भी बने थे बुलबुले

उगते हैं बुलबुले आज हवाओ में,
खिलते हैं बुलबुले आज घटाओ में,
बनाके आँधी सी ये सूरत, घुल रहे फिजाओ में है।

बुलबुला इक युं उगा था, देश को बदलने का,
क्या पता था बुलबुलो को बैठे तीरंदाज़ थे,
हर बुलबुले का हाल हैं वो, जैसे पैर के धूल का,
पर बुलबुले जो घुल चुके, वो फ़िज़ा में खिल रहे।

 उगते हैं बुलबुले आज हवाओ में,
खिलते हैं बुलबुले आज घटाओ में,
बनाके आँधी सी ये सूरत, घुल रहे फिजाओ में है।

बुलबुले तो बुलबुले हैं, बस पल दो पल का साथ था।