Thursday, April 28, 2011

क्योकि...जमी पे जीवन हैं,

आसमा के पंख निकल आये,
की सूरज के पास वो ऊड चला |
धरती की प्यास बढ़ गयी,
जो उसका पसीना निकल गया |

जमी पे कोई आढ़ जो ना रहा हैं,
की जमी पे जीवन जो पनप रहा,
ये जीवन ही जमी को खा रहा हैं
पर जमी की भूख को बड़ा रहा
 
 

राह के मुसाफिरों से हमने जाना,
की ये टेडी रहे दूर तलक जाती हैं.
मंजिलो की कोई खबर मिलती नहीं,
और बत्तर मुश्किले भी आती हैं.

एक पल को राह छोड़ना चाहा भी,
पर साथ उनका हम छोड़ देते कैसे.
मुस्किलो को हम झेल लेते खुद भी,
उनके पैरो मे कांटे चुभने देते कैसे.

Saturday, April 23, 2011

आज जिन्दगी कि गोद मे फिर सोने को दिल करता हैं.
आज खुशियों मे फिर मुस्कुराने को दिल करता हैं
दिल करता हैं बारिसो में फिर से भींग जाने को
आसमान के बांहों मे पतंग बन उड़ जाने को.
 
पर आज हवाओ मे वो ताजगी कहा रही.
ना बारिसो कि बूंदों में छुपी हैं वो नरमी,
मुस्कानों मे भी कोई खुशी नहीं रही हैं.
ऐसी जिन्दगी से तो मौत कि गोद हि हैं