यंहा सिर्फ शब्दों का जाल हैं
मैं किसको क्या बोल बताऊ
पड़े लिखो को क्या सिखलाऊ
अगर मैं कहुं यंहा ये की
शब्दो की हममें समझ नहीं
तो ये शब्दों का एक खेल हैं
शब्द सारे तो खुद मुझमे हैं
बस उन्हें लाने की समझ नहीं
यंहा जो शब्दों से खेलता हैं
वही दुनिया को धकेलता हैं
वही दुनिया को धकेलता हैं
चाहे वो अभिनेता हो
या फिर कल वो नेता हो
वो कोरे शब्दों को बोलता हैं
और जनता के मन से खेलता हैं
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