Sunday, May 11, 2014

एह्शास

एक लाश पड़ी देखि मैने आज,
काडी धुप मे तड़प्ते।
जान तो नहि थी उसमे
पर आँखे जैसे बोलना चाहती।
एक पल पहले हि देखा था उसको
खुश था ज़िंदगी से शायद
पर जाने कौन सा गम था
मार गया उसको लम्हों मे ।
अगले ही पल हैरान खड़ा
मै लाश ढ़ूंढ रहा था
दफना दिया था उसको
मेरे वक़्त ने आगे बढ़कर
अब तो याद भी नहि
कितनो को तो मैंने खुद
क़त्ल किया हैं हर रोज़ ।






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