Saturday, November 23, 2013

जिंदगी कि दास्तां

लिखा था किसी ने लहू से, रेत पे जिंदगी कि दास्तां 
भूल गया था वो फितरत, रेत और वक़्त का बदलना
लिखा तो था दर्द दिल का, पर खुशियों  ने जगह लेली
पाये थे  जंहा काँटों के निशा, फूलो को सींचा लहू से था 

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