Tuesday, September 17, 2013

निर्माण

कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।
कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।
देश को ही बेच कर कर रहे निर्माण हैं
देश को ही लूट कर कर रहे निर्माण हैं

बाटते हैं जमी को, बाटते इंसान हैं
ज्ञान और धर्म को, बाटते अज्ञान से।
धर्म को ना मानते, बाटते ये जात हैं
कोई ऊँचा कोई नींचा, बाटते सम्मान हैं।

कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।
कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।

लुट गई है आबरू, लुट गया इमान हैं,
औरते जूती है पैर की, नर को नर का दर्प है ।
देवियों को पूजता, पत्थरों का सम्मान हैं
जिंदा है जो वो नारी, उसकी ज़िन्दगी नर्क हैं।

कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।
कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।

कहने को तो चाँद पे जाने को तैयार हैं
ये ज़मी को खो रहे, इसका ना हीं ज्ञान हैं
आज को तो खो रहे, कल से हैं अनभिज्ञ भी
पूर्वजो ने जो किया, उसका पर अभिमान हैं

 कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।
कर रहे निर्माण हम देश के भविष्य का।

No comments:

Post a Comment