Friday, May 30, 2014

ख्वाहिशों की दौड़ में, ज़ज़्बात खो गए
मंज़िलों की फ़िक्र में, राह छूट गए 
मशगूल थे जुटाने को ज़िंदगी हम, और  
मुख्तलिफ सी ज़िंदगी, आँखे बंद ज़ी गए ।

Tuesday, May 13, 2014

ऐ राही !!

राह में बैठा क्या सोचे राही, राह कहां ये जांनीं हैँ।
जो तू सोचे राह चलेगी, ये चाह तेरि बैमानि हैँ ।
मंज़िल से क्यो दूर खड़ा तु, मंज़िल खुद न आनीं हैँ ।
जो पग को तु सफ़र बनाले, मंज़िल तुझको पानि हैँ।


Sunday, May 11, 2014

एह्शास

एक लाश पड़ी देखि मैने आज,
काडी धुप मे तड़प्ते।
जान तो नहि थी उसमे
पर आँखे जैसे बोलना चाहती।
एक पल पहले हि देखा था उसको
खुश था ज़िंदगी से शायद
पर जाने कौन सा गम था
मार गया उसको लम्हों मे ।
अगले ही पल हैरान खड़ा
मै लाश ढ़ूंढ रहा था
दफना दिया था उसको
मेरे वक़्त ने आगे बढ़कर
अब तो याद भी नहि
कितनो को तो मैंने खुद
क़त्ल किया हैं हर रोज़ ।