क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
चुनावो में रंगा हैं ये देश, पर रंग किसीका मिलता नहीं
कौन सच्चा, कौन झूठा भेद किसीका खुलता नहीं
बैठ चौराहो पे देदे धरना, पर बात कोई सुनता ही नहीं
वादे तो बहुत हैं उनके, पूरा किसीका होता नहीं।
क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
कर रहा देश का नाम कोई, कोई बदनामी से डरता नहीं,
सम्मान जिसका लुट चूका था, बात उसकी कोई सुनता नहीं
मरना तो था जिन्हे सीमाओ पे, घरो में वो बचते ही नहीं
बेच खाया देश को, वो गद्दार क्यों मरते नहीं,
क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
क्या है ये धर्म उसका, खुद का कोई देखता नहीं,
क्या है ईश्वर, क्या है अल्लाह, जनता उसको ही नहीं,
मांगते हैं सब ही उससे, मानता उसकि ही नहीं,
मर चुको को पूछते हैं, जिन्दो को कोई पूछता ही नही
क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
वैसे तो बहाने बहुत हैं पास मेरे
रंगों में रंग अब घुलता नहीं
एक भाई दुसरे से मिलता नहीं
मिलते हैं तन, मन मिलते ही नहीं
रंगों से सजी ज़िन्दगी, बेरंग जहाँन देखता नहीं
क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
क्यो साल यंहा मुझे होली खेलनी नहीं!
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