Friday, August 20, 2010

एक बदल का टुकड़ा मेरे हाथो मे  पिघल आया हैं,
जिसका हर बूंद साफ़ आईने सा दमक रहा हैं ,
और हर बूंद का सफ़र कहानी बया कर रहा हैं |
कोई सागर की कैद से निकल आया हैं, 
तो कोई दरिया से बिछुड़ निकला हैं,
कोई कुए के बंधन को तोड़ भागा हैं,
तो कोई तलैया से खुद को चुराया हैं|
पर जब सब एक साथ आसमा मे मिले|
तो कही साथ बरसने के लिए,
किसी प्यासी धरती की आत्मा भिंगोने|
ये दुनिया बेमिसाल हैं 
यंहा सिर्फ शब्दों का जाल हैं
मैं किसको क्या बोल बताऊ
पड़े लिखो को क्या सिखलाऊ 
अगर मैं कहुं यंहा ये की 
शब्दो की हममें समझ नहीं
तो ये शब्दों का एक खेल हैं
शब्द सारे तो खुद मुझमे हैं
बस उन्हें लाने की समझ नहीं
यंहा जो शब्दों से खेलता हैं
वही दुनिया को धकेलता हैं
चाहे वो अभिनेता हो 
या फिर कल वो नेता हो
वो कोरे शब्दों को बोलता हैं
और जनता के मन से खेलता हैं

मैं ताल नहीं बेताला हूँ, मैं तो जंतर करने वाला हूँ,
जरा बच के तू रहना, मैं तो तुझको चुराने वाला हूँ |
ना अम्बर से कोई तारा, ना चाँद का टुकड़ा लाया हूँ,
मैं दिल की बाते करता हूँ, बस दिल ही अपना लाया हूँ |

मन क्या कहता

मन क्या कहता हैं, ये जानना हमने ना सीखा|
ना ही सीखा हमने, कि मन क्या सुनता हैं|
ये तो बाते किया करता हैं उड़ान भरने को,
और सुनता ये उसकी जिसका दिल कहता हैं |